Remembrance to Strike of May 1974

New Delhi-8th May 2020

The Railway Strike organized by AIRF on 8th May 1974 was a historical strike . This strike was organized from    8th May 1974 but due to arrest of Comrade George Fernandes, General Secretary Comrade J.P. Chaubey and many others on 1st may, the strike begin from 2nd may itself.

General Secretary, AIRF Shri Shiva Gopal Mishra told that this strike which lasted on 22nd may had brought the country at halt due to stoppage of complete trains movement at most of the places in country. Many of our comrades died in this struggle, thousands were jailed, Lakhs had transferred and faced break in service. The prime Minister Smt. Indira Gandhi that  lime dealt our strike like a war against nation and she used all forces including  Army and para military forces to harass the railway employees but she could not break the strike.

General Secretary Shri Mishra remembered the sacrifices of the martyrs of May 1974 today and paid the condolence him and  told, that all General Secretaries of our affiliates unions and Production Units all over India Railway are also paying the condolence to the Martyrs of May 1974 with managing the social distance during lockdown period in the country from the threat of Corona Pandemic .The corona virus (COVID-19) had brought the country to a halt and countrymen are facing a new challenge from Corona virus which has no medicine and had become challenge before humanity globally. Railwaymen is facing  this challenge quite ably. They are also running 115 labour special trains during lockdown period on the demand of federation and States.. Almost eight lakhs workers are working round-the-clock for running Goods, Parcel and Special Trains to ensure Uninterrupted Supply Chain of Essential Commodities and Goods, facing the threat of Corona Pandemic.

Shri Mishra further said on the May, 1974 Martyrs Day that we are also shocked that in this time while putting life of railwaymen in danger and working 24×7 the government instead of awarding them have freezed there Dearness Allowances. We are negotiating on this issue with government of India but  on this day we must take a pledge that we will not give up our benefits received after lot’s of sacrifices and struggle.

Comrades, we are passing through a very difficult situation where we should not forget to remember the warriors of May 1974 Historic Strike.

1974 की रेलवे हडताल को आजाद भारत की सबसे बड़ी घटना के रूप में याद किया जाता है। वैसे तो यह हडताल 8 मई 1974 के लिए तय की गयी थी लेकिन कॉम। जोर्ज फर्नाडिस, कॉम। उमरावमल पुरोहित और कॉम। ज।पी। चौबे की गिरफ्तारी के बाद यह हडताल 02 मई को ही आरम्भ हो गई। श्री जार्ज फर्नांडीस उस समय ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के अध्यक्ष थे। आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन ने श्री जार्ज फर्नाडीस के नेतृत्व में पहल कर देश के अन्य रेल कर्मचारियों के संगठनों को इकठठा कर राष्ट्रीय समन्वय समिति का गठन किया था और कई माह तक रेल कर्मचारियों के हड़ताल का मांग पत्र तैयार करने के बाद हड़ताल को संगठित करने का अभियान चलाया था। एनएफआईआर ने इस हड़ताल का बहिष्कार किया था।

यह रेल हड़ताल देश की एक ऐसी बेमिसाल हड़ताल थी जिसने समूचे देश के मजदूर आंदोलन और भारतीय राजनीति के ऊपर विशेष प्रभाव डाला था। इस हड़ताल के प्रमुख मुद्दों के अन्य मुद्दे के अलावा एक महत्वपूर्ण मुद्दा था – रेल कर्मचारियों को न्यूनतम बोनस। दरअसल इस हड़ताल से समूचे देश में और मजदूर जगत में एक बुनियादी बहस भी आरंभ हुई थी कि बोनस का सिद्दांत क्या हो ? कुछ लोग और विशेषतः सत्ता पक्ष बोनस को मुनाफे के अंश के रूप में देखता था परन्तु आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन एक वाहिद ऐसा संगठन था जिसने बोनस को शेष वेतन या मजदूरी माना था।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी बाद में कहा था कि ’’बोनस इस द डेफर्ड वेज’’ और इसी सिंद्धांत के आधार पर रेल कर्मचारियों के संगठन ने बोनस की मांग की थी। एआईआरएफ का कहना था कि उस समय के जो अस्थाई रेल कर्मचारी थे, उन्हे भी स्थाई किया जाये। एआईआरएफ का यह आंकलन था कि रेल कर्मचारियों की सारी मांगे पूरी करने पर भारत सरकार पर मुश्किल से 200 करोड़ का बोझ आयेगा। जबकि रेल हड़ताल को तोड़ने के उपर भारत सरकार ने इससे दस गुनी राशि अनुमानतः दो हजार करोड़ रूप्ये खर्च किये थे।
7 मई 1974 को मुबई में नेशनल मजदूर यूनियन के महामंत्री साथी स्व। मलगी की मुबई में गिरफ्तारी के बाद पुलिस हवालात में अचानक मृत्यु होने से मजदूर आक्रोशित हो गये और हड़ताल ने पुरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया शुरू हो गई।

दरअसल 1971 में श्रीमति इंदिरा गॉंधी को संसद के चुनाव में विशाल बहुमत मिला था और फिर बंग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट के रूप में निर्माण के बाद श्रीमति इंदिरा गॉंधी अपनी लोकप्रियता के चरम पर थी। स्व। ललित नारायण मिश्र, भारत के रेल मंत्री थे और स्व। इंदिरा गॉंधी ने रेल हड़ताल को उन्हे हटाये जाने के षड़यंत्र के रूप में देखा था। उनके सूचना स्रोतों ने उन्हे यह समझाया था कि अगर उन्होने रेल कर्मचारियों की मांगे मान ली तो देश में कर्मचारियों की बगावत की एक नई श्रंखला शुरू हो जायेगी। वैंसे भी अपने अंहकारी स्वभाव और लोकप्रियता के मद में उन्हे यह गवारा नही था कि उन्हे कोई चुनौती दे।

इंदिरा गांधी लोकतंत्र को अपने अनुकूल चाहती थी। और इसीलिये भारत सरकार ने वार्तालाप के बजाय टकराव का रास्ता चुना था। कॉम। फर्नाडीस को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में रखा गया। समूचे देश में रेल कर्मचारियों पर और उनके समर्थकों पर दमन चक्र शुरू कर दिया गया। कई लाख कर्मचारियों को नौकरी से मुक्त कर दिया और हजारों कर्मचारियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। रेलवे कर्मचारियों को भयभीत करने के लिये और घुटना टेक कराने के लिये उनके आवासों को घेरा और रेलवे कालोनियों की बिजली काट दी गई। पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई तथा पुलिस के माध्यम से उन्हे व उनके बच्चों को मकान खाली करने को बाध्य किया गया। सैकड़ों कर्मचारियों के घरों का सामान सड़कों पर फेंक दिया गया। रेलवे के इलाकों को सेना के हवाले कर दिया गया और तानाशाही का दमन चक्र क्या हो सकता है इसका पूर्वाभ्यास इस हड़ताल के तोड़ने में नजर आने लगा।

इतिहासकार याद करते हैं कि श्री जार्ज फर्नांडीस ने जेल से अपने साथियों को पत्र लिखकर आगाह किया था और कहा था ’’ दिस इस ड्रेस रिहर्सल ऑफ फासिस्म’’ । सरकार आर्मी और पुलिस की मदद से रात को रेल के इंजनों की आवाज सुनाते थे ताकि रेल कर्मचारी भयभीत हों और रेल हड़ताल जाए और जनता सोचे कि दमन चक्र से भयभीत होकर कर्मचारी काम पर वापिस आ गये है इसलिये गाड़ियों की आवाज सुनाई पड़ रही है। परन्तु सच्चाई यह थी कि रेल कर्मचारियों के संकल्प को तोड़ने के लिये सरकार टेरीटोरियल आर्मी के चालकों से कुछ इंजनों को चलवाती थी ताकि कर्मचारी और उनके परिवार के लोग घबराकर हड़ताल तोड़ दें। लगभग 15 दिन यह हड़ताल चली और 1975 के आपातकाल की पृष्ठभूमि इस हड़ताल ने लिख दी। समूचे देश ने आंतरिक सुरक्षा कानून ’’मीसा’’ का पहला स्वाद इस हड़ताल में चखा था। इस हड़ताल से देश में लोकतंत्र बनाम तानाशाही की बहस आरंभ हुई थी।

1974 की यह रेल हड़ताल न केवल देश की बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी हड़ताल थी, जिसने देश के सत्ता के खम्भों को हिला दिया था। आज इस हड़ताल को 46 वर्ष पुरे हो गए हैं। इन 46 वर्षों में अनेकों प्रकार के राजनैतिक बदलाव आये हैं परन्तु इस रेल हड़ताल ने जिन बुनियादी बातों को लेकर लकीर खींची थी, वे अब भी यथावत हैं। 1979 में स्व। चरण सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने रेल मजदूरों के बोनस के सिद्धांत को स्वीकार किया और न्यूनतम 8।33 प्रतिशत बोनस देना आरंभ किया।

इस हड़ताल के परिणामस्वरूप ही अस्थाई रेल कर्मचारियों को स्थाई करने की प्रक्रिया शुरू हुई तथा रेलवे ने यह निर्णय किया कि कोई गेंगमेन हटाया नही जायेगा। इस हड़ताल ने समूचे देश के मजदूरों और कर्मचारियों में एक आत्मविश्वास और संघर्ष का जज्बा पैदा किया था। कई लाख लोग जिनकी नौकरी बाधित की गई थी या जिन्हे नौकरी से हटा दिया गया था, वे कई वर्षों तक बगैर वेतन के संघर्ष और पीड़ा के दिन गुजारते रहे और 1977 में कांग्रेस सरकार के हटने के बाद जब जनता सरकार बनी तभी उन सबको काम पर वापिस लिया गया।

कितने ही रेल कर्मचारी दवा के अभाव में मौत के शिकार हो गये। देश के अनेक रेलवे स्टेशनों पर पुलिस ने गोलियॉं चलाई और मजदूर मारे गये। आज देश में ऐसे ही मजदूर आंदोलन की जरूरत है क्योंकि मजदूर आंदोलन की आवाज को दबाने का काम किया जा रहा है। 1974 की हडताल आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के अनगिनत संघर्षों का सिरमौर है और पूरी दुनिया के अखबारों में इस हडताल को सुर्खिया मिली।
1974 की रेल हड़ताल एक जीवित यादगारों की मशाल है जो मजदूर आंदोलनों के संघर्षों की प्रतीक और प्रेरणा के रूप में याद की जायेगी।

1974 की हडताल के हीरो